प्रेम चंद्र की एक सुंदर कविता ●•٠ . ❝ खवाहिश ❞ नही मुझे ❝ मशहुर ❞ होने की आप मुझे ❝ पहचानते ❞ हो बस इतना ही काफी है अच्छे ने ❝ अच्छा ❞ और बुरे ने ❝ बुरा ❞ जाना मुझे क्यों की जिसकी जितनी ❝ जरुरत ❞ थी उसने उतना ही पहचाना मुझे !! . ज़िन्दगी का ❝ फ़लसफ़ा ❞ भी कितना अजीब है, शामें ❝ कटती ❞ नहीं, और ❝ साल ❞ गुज़रते चले जा रहे हैं !!
. एक ❝ अजीब ❞ सी दौड़ है ये ❝ ज़िन्दगी ❞ जीत जाओ तो कई ❝ अपने ❞ पीछे ❝ छूट ❞ जाते हैं, और हार जाओ तो ❝ अपने ❞ ही पीछे ❝ छोड़ ❞ जाते हैं !!
. ❝ बैठ ❞ जाता हूं ❝ मिट्टी ❞ पे अक्सर... क्योंकि मुझे अपनी ❝ औकात ❞ अच्छी लगती है !!
. मैंने ❝ समंदर ❞ से सीखा है जीने का सलीक़ा, चुपचाप से ❝ बहना ❞ और अपनी ❝ मौज ❞ में रहना !!
. ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ❝ ऐब ❞ नहीं है पर ❝ सच कहता हूँ मुझमे कोई ❝ फरेब ❞ नहीं है !!
. जल जाते हैं मेरे ❝ अंदाज़ ❞ से मेरे ❝ दुश्मन ❞ क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने न ❝ मोहब्बत ❞ बदली और न ❝ दोस्त ❞ बदले !!.
. एक ❝ घड़ी ❞ ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली - ❝ वक़्त ❞ पीछे ही पड़ गया मेरे !!
. ❝ सोचा ❞ था ❝ घर ❞ बना कर बैठुंगा सुकून से.. पर घर की ज़रूरतों ने ❝ मुसाफ़िर ❞ बना डाला !!!
. ❝ सुकून ❞ की बात मत कर ऐ ग़ालिब.... बचपन वाला ❝ इतवार ❞ अब नहीं आता !!
. जीवन की ❝ भाग-दौड़ ❞ में - क्यूँ ❝ वक़्त ❞ के साथ रंगत खो जाती है ? हँसती-खेलती ❝ ज़िन्दगी ❞ भी आम हो जाती है... एक सवेरा था जब ❝ हँस ❞ कर उठते थे हम और आज कई बार बिना ❝ मुस्कुराये ❞ ही ❝ शाम ❞ हो जाती है !!
. कितने ❝ दूर ❞ निकल गए, रिश्तो को निभाते निभाते.. खुद को ❝ खो ❞ दिया हमने, अपनों को पाते पाते.. लोग कहते है हम ❝ मुस्कुराते ❞ बहोत है, और हम थक गए ❝ दर्द ❞ छुपाते छुपाते.. खुश हूँ और सबको ❝ खुश ❞ रखता हूँ, लापरवाह हूँ फिर भी सबकी ❝ परवाह ❞ करता हूँ.. मालूम है कोई मोल नहीं मेरा, फिर भी, कुछ ❝ अनमोल ❞ लोगो से ❝ रिश्ता ❞ रखता हूँ !! |
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