Wednesday, 20 February 2019

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आतंकवाद की जड़ें!
Osho

 

 

 

 

आतंकवाद की घटना निश्चित रूप से उस सबसे जुडी़ है, जो समाज में हो रहा है। समाज बिखर रहा है। उसकी पुरानी व्यवस्था, अनुशासन, नैतिकता, धर्म सब कुछ गलत बुनियाद पर खडा़ मालूम होता है। लोगों की अंतरात्मा पर अब उसकी कोई पकड़ नहीं रही।


आतंकवाद का मतलब इतना ही है कि लोग मानते हैं कि मनुष्य को नष्ट करने से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो अविनाशी है, बस पदार्थ ही पदार्थ है। और पदार्थ को नष्ट नहीं किया जा सकता, सिर्फ उसका आकार बदला जाता है। एक बार मनुष्य को केवल पदार्थ का संयोजन माना गया और उसके भीतर के आध्यात्मिक तत्व को कोई स्थान नहीं दिया गया तो मारना एक खेल हो जाता है।


इस धरती पर आणविक अस्त्रों का अंबार लगा हुआ है, और क्या आपको खयाल है कि आणविक अस्त्रों की वजह से राष्ट्र असंगत हो गए हैं? आणविक अस्त्रों की ताकत इतनी बडी़ है कि कुछ ही क्षणों में पूरे भूगोल को नष्ट किया जा सकता है। यदि पूरा विश्व एक साथ कुछ मिनटों में नष्ट किया जा सकता है तो विकल्प यह है कि पूरा विश्व एक हो जाए। अब वह बंटा हुआ नहीं रह सकता। उसका अलग रहना खतरनाक है क्योंकि देश अलग रहे तो किसी क्षण भी युद्ध हो सकता है।


अब देशों की सीमाएं बर्दाश्त नहीं की जा सकती। सब कुछ स्वाहा करने के लिए सिर्फ एक युद्ध काफी है। और यह समझने के लिए मनुष्य के पास बहुत वक्त नहीं है कि हम ऐसा संसार बना लें जहां युद्ध की संभावना ही न रहे।


आतंकवाद की बहुत सी अंतरधाराएं हैं। एक तो, आणविक अस्त्रों का निर्माण करने की पागल दौड़ में सभी राष्ट्र अपनी अपनी शक्ति उस दिशा में उंडे़ल रहे हैं। पुराने अस्त्र अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। वे राष्ट्रीय स्तर पर अप्रासंगिक तो हुए हैं, लेकिन निजी तौर पर व्यक्ति उनका इस्तेमाल कर सकते हैं। और आप एक अकेले व्यक्ति के खिलाफ तो आणविक अस्त्रों का उपयोग नहीं कर सकते। यह बिलकुल मूढ़तापूर्ण


होगा। अगर एक अकेला आतंकवादी बम फेंकता है तो क्या आप उस पर एक मिसाइल बरसाएंगे?  मेरा मानना यह है कि आणविक अस्त्रों ने व्यक्तियों को पुराने अस्त्रों का उपयोग करने की स्वतंत्रता दी है। यह स्वतंत्रता अतीत में संभव नहीं थी क्योंकि सरकारें भी उन्हीं शस्त्रों का प्रयोग कर रहीं थीं। आतंकवाद के लिए अमीर देश जिम्मेदार हैं।


अब सरकारें पुराने अस्त्रों को नष्ट करने में लगी हैं, उन्हें समुंदर में फेंक रही हैं, गरीब देशों को बेच रही हैं, जो नए अस्त्र नहीं खरीद सकते। और सभी आतंकवादी उन गरीब देशों से आ रहे हैं जो नए अस्त्र खरीदने की हैसियत नहीं रखते। उन्हें जो अस्त्र बेचे गए हैं, उनके द्वारा ही वे हमला करते हैं। और उनके साथ एक अजीब सुरक्षा है। आप उन पर आणविक अस्त्र या बम फेंक  नहीं सकते। आतंकवाद विकराल रूप धारण करने वाला है और उसका कारण अति विचित्र है। वह यह कि अब तीसरा विश्व युद्ध नहीं होगा। और मूढ़ राजनैतिकों के पास कोई विकल्प नहीं है।


आतंकवाद का मतलब है कि अब तक जो सामाजिक रूप से किया जा रहा था, अब व्यक्तिगत तल पर होगा। यह और बढे़गा। यह तभी बदलेगा, जब हम आदमी की समझ को जड़ से बदलेंगे जो कि हिमालय लांघने जैसा दुरूह है । क्योंकि वे ही लोग जिन्हें तुम बदलना चाहोगे, तुमसे  लड़ेगे। वे आसानी से बदलना नहीं चाहेंगे।


आदमी के अंदर बसा हुआ आदिम शिकारी युद्ध में संतुष्ट हो जाता था। अब युद्ध की संभावना न रही, और शायद अब कभी नहीं होगा। उस शिकारी ने फिर सिर उठाया है, और सामूहिक रूप से हम लड़ नहीं सकते तो एक ही रास्ता बचा हर व्यक्ति अपनी दबी हुई ताप को  निकाले..


सबसे पहली जो बात बदलनी है वह है, मनुष्य को उत्सव की कला सिखानी चाहिए। इसे सारे धर्मों ने मार डाला है। जो असली मुजरिम हैं उन्हें तो गिरफ्तार नहीं किया जाता। ये आतंकवादी और अन्य अपराधी तो शिकार हैं। ये तो तथाकथित धर्म हैं, जोर वास्तविक मुजरिम हैं क्योंकि उन्होंने मनुष्य के आनंद की सारी संभावना को ही नष्ट कर डाला है। उन्होंने जीवन की छोटी-छोटी खुशियों का मजा लेने की संभावना को ही जला दिया। उन्होंने उस सब को निंदित कर दिया, जो प्रकृति ने तुम्हें आनंदित होने के लिए दिया है - - जिससे तुम उत्तेजित होते हो, सन्न होते हो। उन्होंने सब कुछ छीन लिया। और कुछ चीजें ऐसी हैं जिन्हें वे नहीं छीन सकते क्योंकि वे तुम्हारी जैविकी का हिस्सा हैं जैसे कि सेक्स -- तो उन्होंने उसे इतना निंदित किया कि वह विषाक्त हो गया है। जो व्यक्ति सुविधा में या ऐशो - आराम में जी रहा है वह कभी आतंकवादी नहीं हो सकता।


धर्मों ने ऐश्वर्य की निन्दा की और गरीबी की प्रशंसा की। अब धनी आदमी कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। सिर्फ गरीब ही आतंकवादी हो सकते हैं। उनके पास खोने को कुछ नहीं है। वे समूचे समाज के खिलाफ उबल रहे हैं क्योंकि उसी उच्च वर्ग के पास वे चीजें हैं, जो इनके पास नहीं हैं। लोग भय में जी रहे हैं, नफरत में जी रहें हैं, आनंद में नहीं।


अगर हम मनुष्य के मन का तहखाना साफ कर सकें...


और उसे किया जा सकता है। ध्यान रहे, आतंकवाद बमों में नहीं है, किसी के हाथों में नहीं है, वह तुम्हारे अवचेतन में है यदि इसका उपाय नहीं किया गया तो हालात बद से बदतर होते जाएंगे। और लगता है कि सब तरह के अंधे लोगों के हाथों में बम है। और वे अंधाधुंध फेंक रहे हैं। हवाई जहाजों में, बसों और कारों में, अजनबियों के बीच...  अचानक कोई आकर तुम पर बंदूक दाग देगा। और तुमने उसका कुछ बिगाड़ा नहीं था।


तो व्यक्तिगत हिंसा में वृद्धि होगी... हो ही रही है। और तुम्हारी सरकारें और तुम्हारे धर्म नई स्थिति को समझे बगैर पुरानी रणनीतियों को अपनाए चले जाएंगे।


नई स्थिति यह है कि प्रत्येक मनुस्य को आंतरिक चिकित्सा से गुजरना जरूरी है। उसे अपने अवचेतन उद्देश्यों को समझना जरूरी है। प्रत्येक को ध्यान करना आवश्यक है ताकि वह शांत हो जाए। उसकी तल्खी ठंडी हो जाए और वह संसार को नए परिप्रेक्ष्य में देखे, मौन से सराबोर हो जाए।

 


(बियाण्ड सायकॉलॉजी से संकलित)


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