Wednesday, 8 August 2012

***keep_mailing*** Chal kahi or chale

                            Chal kahi or chale


अब तो इस शहर के माहोल से होती है घुटन 
चल कही और चले कोई हमदर्द नहीं चल कही और चले 

अपनी किश्मत का सितारा नहीं चमकेगा यहाँ, 
ये मेरी मेरी जाने जहाँ ,
प्यार  के चाँद को  रोज़ लगता है यहाँ रोज़ ग्रहण ,

सुर्ख जोड़े है न चूड़ी है न मेहँदी न सुहाग, 
कितना खामोश है यार ,
यहाँ मजदूर की बेटी नहीं बनती है दुल्हन, 

मोसम ऐ गुल में पतझड़ का गुमाँ होता है 
अब तो बरसात के मोसम भी जलता है बदन
 
सख्तिया मुझ पे भी उन पर भी इधर पाबंदी 
बन गए हैं केदी लोग होने नहीं देंगे कभी अपना तो मिलन 

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